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Showing posts from September, 2017

PITY OR PENURY-WHAT AFFECTS MORE

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At the tender age of 7, you are too young to understand the importance of having a complete family. Nevertheless, you are old enough to decipher the role each member plays in your life. He was an infant, just 6 months old when he was left abandoned along with his mother. Illiteracy, penury and village life can only cause more stress than helping you spring out of it. Destiny had deprived Himanshu of his father’s love. Intoxicated most often, Himanshu’s father never contributed to the household expenses. He rarely came home sober, and constantly abused his wife. The birth of his child never brought about any change in his attitude. Frustrated by her husband’s drinking habits, incompetence and constant abuse, Himanshu’s mother fled to her native hoping that at least now she would be able give her child a decent life. Days passed by and so did years; but there was no sign of Himanshu’s father paying any visits to his family. “Not a call in 7 years”- exclaimed Himanshu’s mother

सिने कलाकार, निर्माता तथा सामाजिक कार्यकर्ता कुनिका सदानंद ने कैंसर पीड़ित बच्चो की मुलाकात ली एवं गिफ्ट्स भी बाँटे।

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सिने कलाकार, निर्माता तथा सामाजिक कार्यकर्ता कुनिका सदानंद शुक्रवार को भगवान  महावीर कैंसर चिकित्सालय एंव अनुसंधान केन्द्र पहुंची। इस मौके पर कुनिका ने ना सिर्फ बाल कैंसर रोगियों से मुलाकात की बल्कि उन्हें मनचाहे उपहार भी दिए। कुनिका ने कहा कि सकारात्मक सोच किसे कहते हैं वह हमें इन बच्चों से सीखना चाहिए, जो हर दिन कैंसर से लडकर भी चेहरे पर मुस्कान लिए हुए हैं। इन बच्चों को देखकर मुझे काफी पॉजिटीव एनर्जी मिल रही है। इस दौरान कुनिका ने हॉस्पिटल में मौजूद उपचार की सुविधाओं की जानकारी ली। इस मौके पर चिकित्सालय वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्रीमती अनिला कोठारी, चिकित्सा निदेशक डॉ (मेजर जनरल) एस सी पारीक भी मौजूद थे। हॉस्पिटल प्रशासन की ओर से बच्चों को उपहार देने और सेलिब्रिटी से उनकी मिलने की ख्वाहिशों को पूरा किया जाता है। इन प्रयासों से उनके स्वास्थ्य पर भी सकारात्मकं प्रभाव पड़ता है, अस्पताल के साथ अपनापन बना रहता है और अस्पताल में इलाज हेतू आने का डर भी खत्म हो जाता है। ड्रीम्ज़ फाउंडेशन (केजीके इनिशिएटिव) की पहल ड्रीम्ज़ फाउंडेशन का उद्देश्य कैंसर जैसी भयावह बीमारी से पीड़ि

बार-बार होने वाले इंफेक्शन को ना करें नजर अंदाज

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इंफेक्शन की प्रॉब्लम कई लोगों को होती है, लेकिन अधिकांश लोग इसे नजर अंदाज करते है। वास्तव में बार-बार होने वाला इंफेक्शन किसी गंभीर बीमारी का लक्षण भी हो सकता है। ब्लड के वाइट ब्लड सेल्स की मात्रा कम होने के कारण शरीर की इम्युनिटी पॉवर कमजोर हो जाती है। इस वजह से व्यक्ति इंफेक्शन की चपेट में आ जाते हैं। अगर आप बार-बार सर्दी जुकाम या किसी अन्य तरह के इंफेक्शन के शिकार हो रहे हैं तो डॉक्टर से तुरंत अपना चेकअप करवाएं। क्योंकि यह ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) का भी एक लक्षण है। ब्लड कैंसर से कई अन्य लक्षण भी हैं जिसके जरिए इस रोग की पहचान की जाती है।  शरीर पर निशान पड जाना - ब्लड में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाना भी ल्यूकेमिया के लक्षणों में से एक है। प्लेटलेट्स की कम संख्या के कारण त्वचा के नीचे छोटी रक्त वाहिकाएं टूट जाती हैं जिसकी वजह से शरीर पर नीले या बैगनी कलर के निशान पड़ जाते हैं। इसके साथ ही जब शरीर में इन खून के थक्कों की पर्याप्त कोशिकाएं नहीं होती हैं, तो चोट लगना और खून बहना एक सामान्य बात हो जाती है। जल्द ही थकावट होना - जब कोई व्यक्ति ल्यूकेमिया से पीड़ित हो तो उसके शरी

महिला कैंसर जागरूकता पर वर्कशॉप

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भीलवाडा कैंसर केयर फाउंडेशन के तहत महिला कैंसर विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। महिला आंगनबाडी कार्यकर्ताओं के लिए आयोजित इस संगोष्ठी में कार्यकर्ताओं को स्तन और सरवाइकल कैंसर के बारे में जागरूक किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता भगवान महावीर कैंसर अस्पताल जयपुर के वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ ललित मोहन शर्मा ने बताया कि महिलाओं में बच्चेदानी के मुंह का कैंसर एवं स्तन कैंसर भारत में सर्वाधिक रूप से पाया जाता है। डॉ शर्मा ने बताया कि भारत में करीब दो से ढाई लाख महिलाएं प्रतिवर्ष स्तन कैंसर से ग्रसित होती है। इनमें से 70 फीसदी महिलाएं एडवांस स्टेज में कैंसर अस्पताल पहुंचती है। हर 8वीं महिला को स्तन कैंसर का खतरा है। प्रतिवर्ष करीब 150,000 महिलाएं सरवाइकल कैंसर से ग्रसित होती हैं और करीब 75000 महिलाएं की मृत्यु होती है। डॉ इन्दु ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं में सरवाइकल कैंसर (बच्चेदानी के मुंह का कैंसर) सर्वाधिक होता है। इसका मुख्य कारण जननागों में हृयूमन पैपीलोमा वाइरस इंफेक्शन से होता है। पेप स्मेयर नामक जांच से कैंसर होने से पहले ही पता लगाया जा सकता है। डॉ शर्मा

सेवाभाव के साथ मिले उपचार से जीत ली जिंदगी की जंग

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करीब दस साल पहले मुझे ब्रेस्ट में दर्द महसुस हुआ, लेकिन मुझे लगा यह दर्द मेनेपॉज की वजह से है इसलिए मैंने इसे नजर अंदाज कर दिया। करीब चार साल ऐसे ही गुजर गए और मुझे फिर से दर्द महसुस होने लगा। फिर मैंने अपने फैमेली डॉक्टर को दिखाकर जॉच करवाई तो मुझे थर्ड स्टेज का ब्रेस्ट कैंसर होना सामने आया। मैं डॉक्टर नितिन खूंटेटा से उपचार करवाने के लिए 2012 में जयपुर आयी और भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल में उपचार करवाया। जब पहली बार डॉक्टर से मिली तो उन्होंने ना सिर्फ मेरी बीमारी की स्थिति के बारे में बताया बल्कि उपचार किस तरह से होगा इसकी पूरी जानकारी देते हुए विश्वास दिलाया कि सब ठीक हो जाएगा। जब आपका डॉक्टर आपको यह विश्वास दिलाए तो लगता है कि आधी बीमारी तो ठीक ही हो गई है। मैंने लापरवाही की और लम्बे समय तक बीमारी को नहीं दिखाया इसलिए मेरा कैंसर दोनों ब्रेस्ट में फैल गया था। ऐसे में दोनो ब्रेस्ट की सर्जरी जनवरी 2012 हुई और उसके बाद रेडिएशन थैरेपी चली। उपचार के दौरान डॉक्टर, नर्सिंग स्टॉफ सभी ने ना सिर्फ हमें कॉपरेट किया बल्कि समय-समय पर गाइड भी किया। इसी सपोर्ट की वजह से आज मैं पूरी तरह से स

धुम्रपान जहर है, इससे बचें और अपनों को बचाएं

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दोस्तों के साथ लगी आदत जीवन में मुझे इतने बड़े  संकट में डाल देगी यह मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। 20 साल की बीड़ी  पीने की आदत ने मुझे मुंह का कैंसर तोहफे में दिया। उसी दिन मैंने ठान लिया कि अब इस जहर को कभी अपने होठों से नहीं लगाऊंगा।  करीब छह साल पहले मुझे जीभ के नीचे एक छाला हुआ। कई दवा खाई, लेकिन छह माह तक छाला सही नहीं हुआ। उसके बाद मैंने झालावाड़ के डॉक्टर को दिखाया। वहां हुई जांच में मुझे कैंसर बताया गया। यह सुनते ही एक बार मेरा दिल बैठ गया। सोचा कि, किसान हूं और खेती करके अपना घर चलता हूं, ऐसे में कैंसर जैसी बीमारी का इलाज कैसे करवाऊंगा। मुझे डॉक्टर ने जयपुर के भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल में उपचार करवाने की सलाह दी। यहां मेरा उपचार डॉ नरेश लेडवानी ने शुरू किया। पहली बार जब डॉक्टर से मिला तब ही उन्होंने मुझे समझाया कि बीड़ी की आदत छोड दूं और पूरा उपचार लूं। जैसे-जैसे डॉक्टर ने कहा मैं उपचार करवाता रहा। 8 दिसम्बर 2011 को मेरी सर्जरी हुई। सर्जरी होने के बाद सेक और दवा चलती रही।  छह माह मेरा उपचार चला और मैं कैंसर मुक्त हो गया। बी.पी.एल श्रेणी में होने की वजह से