हमसफर तो कोई वक्त के वीराने में, सूनी आंखों में कोई ख्वाब सजाया जायें, घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जायें - निदा फाजली






नाम - मास्टर सचिन, 3 वर्ष, डॉ. उपेन्द्र शर्मा, बी-एएलएल

फलो का ठेला चलाने वाले अलवर, राजस्थान, निवासी गिरीश कुमार का 3 वर्षिय पूत्र मास्टर सचिन। एक माह से बार-बार बुखार और शरीर में गठाने। स्थानीय अस्पताल में ईलाज से लाभ न होने और रक्त परीक्षण पर कैंसर की आशंका जताने पर बच्चे को भगवान महावीर कैंसर अस्पताल लेकर आये। यहां बुखार व खून की कमी (एनिमीयां) का ईलाज चला और सभी जांचे हुई। रक्त परीक्षण पर कैंसर के लक्षण पाये गये। बोनमेरो (अस्थिमज्जा) के परीक्षण पर अक्यूट लिम्फोब्लॉस्टिक ल्यूकीमिया का निदान हुआ। यह अस्थिमज्जा का एक कैंसर होता है, लिम्फोइड श्रेणी के सफेद रक्तकणों (लिम्फोब्लॉस्ट) का कैंसर। अक्यूट अर्थात तीव्र गति का कैंसर। उचित एवं समयानुसार ईलाज न करवाया जाये तो प्राण घातक। 3 वर्ष की नन्हीं सी जान और यह घातक कैंसर।

बोनमेरो में सभी रक्तकण बनते हैं। किसी एक कैंसर कोशिकाओं से भरी होने से अन्य रक्तकण का बनना गंभीर रूप से प्रभावित होता हैं। जैसा इस बालक में था। लाल रक्तकण कम बनने के कारण एनिमियां, प्लेटलेट्स कम बनने के कारण रक्तस्राव और रक्षक सफेद कण न बनने से बार-बार संक्रमण। कैंसर का ईलाज तो अलग, पहले अगर इनका ईलाज न हो तो ही जान की जोखिम होती है। नन्हीं सी जान और हजार जोखिम। माँ-बाप एवं पूर्ण परिवार बेहाल। 
ईलाज शुरू करने के पहले विधिवत और परीक्षण आवश्यक ताकि उसी अनुरूप उपचार किया जाये। सचिन की कैंसर कोशिकाओं में गुणसूत्रों (क्रोमोजोन्स) की विकृति नहीं थी। कैंसर कोशिकायें बी श्रेणी की थी। कुल मिलाकर आंकलन हुआ कि यह उपचार साध्य कम जोखिम वाला रक्त कैंसर था। (बी-एएलएल स्टैण्डर्ड रिस्क)। चिकित्सको के अनुसार 2002 में मोंिडफाइड मल्टीड्रग बीएफएम 95 प्रोटोकॉल’ से ईलाज करना तय हुआ। 
ईलाज अत्यन्त खर्चिला, अनुमानित लागत 5 लाख। ठेला चलाने वाले गिरीश ने राहत की सांस ली जब बताया गया कि इस उपचार साध्य कैंसर के उपचार की सुविधा भगवान महावीर कैंसर अस्पताल में जीवनदान परियोजना के अन्तर्गत निःशुल्क उपलब्ध है। चिकित्सक की अनुशंसा पर उपचार हेतु सचिन का पंजीकरण परियोजना में किया गया। 
पहले इंडक्शन उपचार से कैंसर रोधक व कैंसर नाशक दवाईयाँ लगभग प्रतिदिन फेज-1, फेज-2 में दो माह तक चली। रक्त परीक्षण पर कैंसर कोशिकाओं का रक्त से विलुप्त होना पाया गया। अर्थात उपचार सार्थक था। कैंसर कोशिकायें रक्त से तो विलुप्त प्रायः थी लेकिन चिकित्सको को मालूम है कि ये कोशिकायें अस्थिमज्जा और अन्यत्र विशेषकर मस्तिष्क में छिपी हो सकती हैं। अतः कुछ सप्ताहों के विराम के बाद उन परोक्ष कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना सुनिश्चित करने को कन्सोलिडेशन या इन्टेन्सिफिकेशन उपचार प्रतिदिन दो माह तक चला। तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क व सुसुम्ना) में छुपी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए मस्तिष्क तरल सीएसएफ में कैंसर रोधक दवाईयाँ डाली गई। दो सप्ताह के विराम के बाद उपचार की सार्थकता बरकरार रखने के लिए आरम्भ हुआ लम्बा कैंसर रोधक टेबलेट्स से मैन्टीनेन्स उपचार, जो एक वर्ष से अधिक चला।
इस उपचार के दौरान कई ऊतार-चढ़ाव आयें। एनिमियां, प्लेटलेट्स की कमी से रक्तस्राव, संक्रमण, उल्टी-दस्त आदि हुए, सघन ईलाज चला जिसका बच्चे ने बहादुरी से मुकाबला किया। चिन्ता आतुर अनहोनी की आशंका ग्रस्त माता-पिता ने बच्चे के साथ रात-दिन काटे।
पहले इंडक्शन उपचार के बाद कैंसर कोशिका विलुप्त होना (रेमीशन) आगे के उपचार में चालू रहा और आज बच्चा सर्वथा कैंसर मुक्त है, स्वस्थ है और सामान्य जीवन जी रहा है। अप्रेल, 2017 को सचिन को उसके माँ-बाप जब दिखाने के लिए लाये थे बच्चा सर्वथा सामान्य था। आशा है कि बच्चा आजीवन कैंसर मुक्त रहेगा।

***बीएफएम-95 प्रोटोकॉल - बर्लिन, फ्रेन्कफर्ट, मन्स्टर प्रोटोकॉल

मीथोट्रक्सेट, प्रेडनिसोलोन, विनक्रिस्टिन, डोनारूबिसिन, एल-एस्पराजिनेज, 6-मेरकाप्टोप्यूरिन, साइक्लोफोस्फामाइड, मेसना, साइटारेबिन, ल्यूकोवोरिन, थायोक्वानिन कैंसर रोधक व नाशक दवाईयाँ अलग-अलग कम्बीनेशन में चली।

जीवनदान परियोजना द्वारा पूर्ण उपचार निःशुल्क करवाया गया। बच्चा परियोजना में पंजीकृत है और अस्पताल की निःशुल्क सेवायें उपलब्ध रहेंगी।

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