मंजिलें क्या हैं, रास्ते क्या हैं। हौंसला हो तो, फासले क्या हैं।

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, 
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जायें - निदा फाजली



उदयपुरवाटी, झुन्झनु के मास्टर शौर्य को किराने की दूकान करने वाले उसके पिता 14 अप्रेल 2014 को लेकर भगवान महावीर कैंसर अस्पताल में आये। बताया कि 4 माह पहले तक हँसते खेलते शौर्य को बारबार बुखार, थकावट, कमजोरी और रक्तस्त्राव  होने पर एक बड़े अस्पताल में दिखाया, जाँच पर प्लेटलेट्स काफी कम पाई गई। अस्थिमज्जा के परीक्षण पर उन्हें मज्जा में कोशिकाओं का गहन अभाव पाया (पेनसाइटो पीनिया) निदान के अनुसार बच्चे को घातक अप्लास्टिक एनिमीयां था। अर्थात बच्चे की अस्थिमज्जा में रक्त कोशिकाएं बनाने की क्षमता एकदम लुप्त थी। निदान सुनकर माँ बाप के होश उड़ गये। उन्हें बताया गया कि इसका एकमात्र उपाय बोनमैरो ट्रांसप्लान्ट (प्रतिरोपित) करना था। उस सरकारी बड़े अस्पताल में यह सुविधा उपलब्ध थी और उन्हें कम से कम खर्चे पर इसे उपलब्ध कराने का प्रबन्ध किया गया। ट्रांसप्लान्टेशन से पहले आवश्यक मैचिग के लिये एचएलए टेस्टींग आदि करवा ली गई। अति चिन्तित माता-पिता ट्रांसप्लान्ट करवाने से पहले अन्यत्र परामर्श लेना चाहते थे और वे बच्चे को भगवान महावीर के हिमेटोलोजिस्ट के पास लेकर के आये। बच्चे के रक्त परीक्षण पर समस्त रक्तकणों की कमी के साथ 45 परसेन्ट ब्लॉस्ट कैंसर कोशिकाएं पाये गये। अतः बोनमैरो बॉयोप्सी वापस की गई जिसमें अल्प मैरो में कैंसर सैल्स के ब्लॉस्ट पाये गये। अस्पताल में उपलब्ध फ्लोसाइटोमेट्री विधि एवं बाहर से आरक्यू पीसीआर परीक्षण करवाये गये। चिकित्सक एवं बच्चे के अभिभावको ने राहत की सांस ली जब अप्लास्टिक एनिमियां की जगह अक्यूट प्रोमाईलोसाइटिक ल्यूकीमिया (एपीएमल एएमएल) का निदान हुआ।

प्रोमाईलोसाइट कोशिकायें रक्त के श्वेतकण जनन की प्रक्रिया में परिपक्वता की बीच की कड़ी की कोशिकायें होती हैं। इसी से इओसिनोफिल, बेसोफिल न्यूट्रोफिल कोशिकायें बनती है। इन परिपक्व श्वेत कोशिकाओं में रोगाणुओं को नष्ट करने के मारक ग्रेन्यूल्स (कण) होते हैं। एपीएमएल कैंसर में इन श्वेतकणों का विकास प्रोमाइलोसाइट स्टैज पर रूक जाता है। मारक कणों की बहुलता के कारण अगर ये बड़ी मात्रा में शरीर में नष्ट होते है तो रोगी की गंभीर अवस्था हो सकती है। उपचार के लिए उपयुक्त ऑल-ट्रांसरेटीनोइक एसिड वह औषधी है जो इन अपरिपक्व कैंसर कोशिकाओं को परिपक्व कोशिकाओं में बदल देती है। साथ में दिया गया आर्सनिक ट्राईऑक्साइड इन कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।

अक्यूट प्रोमाईलोसाइटिक ल्यूकीमिया उपचार साध्य कैंसर है और जिससे बच्चे को कैंसर से सर्वकालिक मुक्ति मिलने की 90 प्रतिशत से अधिक संभावना है।

अभिभावको की दुश्चिन्ता खत्म हुई जब उन्हें बताया गया कि भगवान महावीर कैंसर अस्पताल में इन रक्त कैंसरों के उपचार के लिये निःशुल्क सुविधा डोनेट लाईफ प्रोजेक्ट के अन्तर्गत उपलब्ध है। चिकित्सक की अनुशंसा एवं परिवारजन की रजामंदी पर बालक को प्रोजेक्ट में निःशुल्क उपचार के लिये पंजीकृत किया गया। बच्चे का इंजेक्शन आर्सनिक ट्राईऑक्साइड कैप्सूल ऑल-ट्रांसरेटीनोइक एसिड़ से प्रारम्भिक (इंडक्शन) कीमोथैरेपी ईलाज शुरू किया गया।

बोनमैरो के पुनः परीक्षण पर पाया गया कि कैंसर काबू (रेमिशन) में था। ईलाज सही एवं सफल हुआ। अतः वही ईलाज बतौर कन्सोलिडेशन कीमोथैरेपी 7 माह के लिये चला।

इसके बाद एक वर्ष तक टेबलेट 6 एमपी के साप्ताहिक टेबलेट मीथोट्रेक्सेट हर 3 माह पर कैप्सूल ऑल-ट्रांसरेटीनोइक एसिड़ से मेन्टीनेन्स कीमोथैरेपी की गई।

मंजिलें क्या हैं, रास्ते क्या हैं। 
हौंसला हो तो, फासले क्या हैं।

बच्चे ने बहादूरी के साथ मार्च 2016 में अपना ईलाज सम्पूर्ण करवाया। 2 साल से लगातार बच्चे का ईलाज करवाते माता-पिता ने गहरी राहत की सांस ली जब उन्हें आश्वस्त किया गया कि बच्चा अब पूर्णतया कैंसर मुक्त है।

बच्चे की बहादूरी और माँ-बाप की निष्ठा और चिन्ता का अन्दाज इसी से लगता है कि बच्चा अपने गाँव से आकर 41 बार अस्पताल में भर्ती रहा, सदा माँ-बाप साथ रहे।

30 सितम्बर 2016 को चैकअप आरटीपीसीआर (पीएमएल-रारा) पर बच्चा सर्वथा कैंसर मुक्त था।

मई 2017 में अस्पताल में फोलोअप पर सर्वथा स्वस्थ एवं सामान्य बच्चो की तरह था। पिता ने बताया कि बच्चा दूसरी कक्षा में पढ़ रहा है सामान्य बच्चो की तरह खेलता-कूदता है।

जीवनदान परियोजना द्वारा बच्चे का पूर्ण उपचार निःशुल्क करवाया गया। बच्चा परियोजना में पंजीकृत है और अस्पताल की निःशुल्क सेवायें उपलब्ध रहेंगी।

नाम - मास्टर शौर्य   
फाईल नं आर 3268     
डॉ उपेन्द्र शर्मा       
एपीएमएल

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