जिंदगी का मूल्य तब समझ में आया जब 'कैंसर' ने मुझे गले लगाया


अवधेश कुमार निवासी यूपी, 19 साल की उम्र में मुझे गुटखा खाने की आदत लगी। यह आदत मुझ पर धीरे-धीरे हावी होने लग गई थी। 30 साल की उम्र में रोज के 15 से 18 पैकेट गुटखें के खा जाया करता था। मेरी इस लत का हिसाब मुझे चुकाना पडा। मेरी जीभ के कॉर्नर पर एक सफेद छाला हुआ। जो लाख कोशिशों के बाद भी एक साल तक ठीक नहीं हुआ। उसके बाद मैंने अपने एक दोस्त को इस छाले के बारे में बताया और उसने कहा 'कि हो सकता है यह कैंसर की निशानी हो। यह सुनते ही मेरा गला सूख गया। ऐसा लगा कि दोस्त का शक सही होगा तो जिंदगी ही खत्म हो जाएगी। उसकी बातों से मैं बहुत डर गया था। उस समय मैंने अपने घर वालों को अपनी स्थिति बताई और फिर मेरे पिता मुझे डॉक्टर के लेकर गए।

जांच के दौरान सामने आया की मुझे कैंसर है । इस खबर से पिता की आंखों में दुख के आंसु झलक गए, जिसने मुझे अंदर से झंझोर दिया। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जिसके कारण दिल्ली में उपचार नहीं करवा पाया। मुझे दिल्ली के एक डॉक्टर की ओर से जयपुर के भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल के बारे में पता चला और मैं यहां उपचार करवाने के लिए आ गया। यहां ना सिर्फ किफायति उपचार मिला बल्कि कई बार मेरे सेक निशुल्क भी हुए। हॉस्पिटल के डॉक्टर तेज प्रकाश सोनी ने मेरा उपचार किया। दो साल उपचार से मेरे जीभ के कैंसर वाले हिस्से को निकालकर, दोबारा जीभ बना दी और मुझे कैंसर मुक्त कर दिया। इस हॉस्पिटल ने ना सिर्फ मुझे जीवन दान दिया है, बल्कि मेरे परिवार के चेहरे पर एक बार फिर से मुस्कान ला दी है। मैंने इस बात को जान लिया है कि गुटखा-पान मसाला एक जहर के समान है। इससे दूर रहना बहुत जरूरी है। पहले मैं गुटखें की दुकान लगाता था अब मैंने वो भी बंद कर दी है और यह प्रण ले लिया है कि इस जहर के समान को कभी नहीं बेचूंगा।

 

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